Facebook Like ( Like करे )

डर




to listen audio,click here. ( ऑडियो सुनने के लिए यहाँ क्लिक करे)


मैं अकेला जा रहा था ,गीत कोई गा रहा था.
हवा बदली बदली सी थी,शायद कोई आ रहा था .
ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता गया ,आहटें बनने लगी.
हृदय धक धक करने लगा और  मन में एक शंका जगी.
कौन आखिर कौन है जो हर वक़्त मुझको देखता है.
मैं अकेला वो अकेला ,फिर भी उसमे एकता है.
धीरे- धीरे ,हौले -हौले ये भ्रम मुझे सता रहा था .
मैं अकेला जा रहा था ,गीत कोई गा रहा था.



 हृदय जैसे रुक चूका था वैसे रुक गया विवेक मेरा .
 विचलिता बढ़ने लगी ,ज्यों -ज्यों बढ़ता गया अँधेरा .
  रैन के उस मौन में भी अट्टहास ऐसा लगा.
कहीं कोई कुरूप-विकृत  सोया हुआ दानव जगा.
चीखने लगा ,रोने लगा उस भय में मैं खोने लगा.
आत्मा मेरी द्वन्द में थी ,ये द्वन्द कब होने लगा.
विलक्षण अभिनय डर का वो था ,जो मुझे हरा रहा था.
मैं अकेला जा रहा था ,गीत कोई गा रहा था.





0 comments:

Post a Comment

Nitin Jain. (No copy Rights ). Powered by Blogger.

पेज अनुवाद करें. ( TRANSLATE THE PAGE )