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प्रेम युद्ध :P





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कभी तू लडती है ,
तो कभी मैं लड़ता हूँ.
पर लड़ाई के इस क्षितिज पर,
केवल प्रेम करता हूँ.
छोटी बातें मोटी बनकर,
शब्द ,वाक्य से छंद बन गए.
" तू-तू,मैं -मैं " के  गीतों के ,
देखो कैसे तीर तन गए.
नयन तुम्हारे नृत्य है करते,
तरह -तरह के रूप ये धरते.
शब्दों के सारे हथगोले ,
मुख पर आकर यूँ थम गए,
की अगर युद्ध हुआ,
तो शामत आई.
नहीं हुआ,
तो आफ़त आई.
आफ़त मुह फूलाने की,
आफ़त रूठ जाने की.
आफ़त आंसू बहाने की.
और बात-बात पे बात बनाने की.
""की "तुम कितना लड़ते हो."
हर बात पे   झगड़ते हो.
मेरी सहेली के पिया देखो,
कितना प्रेम उसे करता है.""
कैसे कहूँ तुम्हे की,
वो बेचारा उससे डरता है.
पर फिर भी,
जब भी तुम गुस्सा होती हो,
ये प्रेम मेरा और बढ़ता है.
उन बड़ी आँखों के गीले पन का,
एक अकेला डर लगता है.
टिप-टिप गिरते  उस बूंदों से.
कसम से बोहत डरता हूँ.
कभी तू लडती है ,तो कभी मैं लड़ता हूँ.
पर लड़ाई के इस क्षितिज पर,
केवल प्रेम करता हूँ.



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