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वो भोर फिर से आएगी...
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उस नन्ही चिड़ियाँ को,
ना डर ढलती शाम से.
शायद उसे पता है ,
वो भोर फिर से आएगी .
आशा की पहली किरण से ,
वो लम्बी रात ढल जाएगी.
सुबह का संगीत फिर से,
नए राग लेकर आएगा.
नए साज़ छिड़ से जाएँगे,
फिर हौले गुनगुनाएगा.
की जाग और जगा जगत को,
जिसे डर है उस रात का.
रात से जुडी हर बात का.
बिच में छूटने वाले उन सरे हाथ का.
सच्चे - झूटे हर उस साथ का.
जो सिर्फ दिन में जिन्दा है.
मौन - विकलांग सपने सा.
मारीच से किसी अपनो सा.
पर लम्बे सपने भी तो छणिक है,
दिखती भले लम्बी हो,
पर ये रात सच में तनिक है.
उगते सूरज के साथ ,
झट यूँ गायब हो जाएँगे.
वो चिड़ियाँ फिर काम पे जाएगी.
क्यूंकि उसे पता है,
वो भोर फिर से आएगी........
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