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पीड़ित कवी
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तपित ताप की ज्वाला में,
हृदय तरु मेरा जल रहा था.
विचलित-विलाक्षित कवित्व मेरा,
तम में मनो गल रहा था.
प्रबल ज्योति ज्वलित जल-जल,
व्योम के निचे अकेला .
हृदय की इस रिक्तता में,
मैं तो जैसे चल रहा था.
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