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शरहद पार के पडोसी ....
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शरहद पार पडोसी ख़फ़ा है, ज़मीन के एक टुकड़े के लिए,
जो कुछ बरस पहले तारा था , कुछ बरस बाद तारा होगा,
ना कभी हमारा था, ना कभी तुम्हारा होगा.
ज़रा ठहरो और सोचो,
की दोनों और....
काला अँधेरा आधी रोटी और हालत बेहाल है,
वक़्त की इस चादर में फिर भी एक धागा लाल है.
लाल लहू उस लड़के का , जिसका यौवन बस गुजर गया.
लाल लहू उस लड़की का, जिसका सिन्दूर उजड़ गया.
लाल लहू उस बच्चे का,जिसने चलना बस सिखा था.
लाल लहू उस मेहँदी का, जिसका रंग अभी भी फीका था.
कभी ख़ुदा, कभी ज़मीन के नाम पर, कितने मरे ,कितने जिये.
शरहद पार पडोसी ख़फ़ा है, ज़मीन के एक टुकड़े के लिए.....
11:10 | | 2 Comments
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